॥ दोहा ॥
मास वैशाख कृतिका युत, हरण मही को भार।
शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन, लियो नरसिंह अवतार॥
धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम।
तुमरे सुमरन से प्रभु, पूरन हो सब काम॥
॥ चौपाई ॥
नरसिंह देव में सुमरों तोहि, धन बल विद्या दान दे मोहि।
जय जय नरसिंह कृपाला, करो सदा भक्तन प्रतिपाला।
विष्णु के अवतार दयाला, महाकाल कालन को काला।
नाम अनेक तुम्हारो बखानो, अल्पबुद्धि में ना कछु जानों।
हिरणाकुश नृप अति अभिमानी, तेहि के भार मही अकुलानी।
हिरणाकुश कयाधू के जाये, नाम भक्त प्रहलाद कहाये।
भक्त बना विष्णु को दासा, पिता कियो मारन परसाया।
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा, अग्निदाह कियो प्रचंडा।
भक्त हेतु तुम लियो अवतारा, दुष्ट-दलन हरण महिभारा।
तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे, प्रह्लाद के प्राण पियारे।
प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा, देख दुष्ट-दल भये अचंभा।
खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा, ऊर्ध्व केश महादष्ट्र विराजा।
तप्त स्वर्ण सम बदन तुम्हारा, को वरने तुम्हरों विस्तारा।
रूप चतुर्भुज बदन विशाला, नख जिह्वा है अति विकराला।
स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी, कानन कुंडल की छवि न्यारी।
भक्त प्रहलाद को तुमने उबारा, हिरणा कुश खल क्षण मह मारा।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हे नित ध्यावे, इंद्र महेश सदा मन लावे।
वेद पुराण तुम्हरो यश गावे, शेष शारदा पारन पावे।
जो नर धरो तुम्हरो ध्याना, ताको होय सदा कल्याना।
त्राहि-त्राहि प्रभु दुःख निवारो, भव बंधन प्रभु आप ही टारो।
नित्य जपे जो नाम तिहारा, दुःख व्याधि हो निस्तारा।
संतान-हीन जो जाप कराये, मन इच्छित सो नर सुत पावे।
बंध्या नारी सुसंतान को पावे, नर दरिद्र धनी होई जावे।
जो नरसिंह का जाप करावे, ताहि विपत्ति सपनें नही आवे।
जो कामना करे मन माही, सब निश्चय सो सिद्ध हुई जाही।
जीवन मैं जो कछु संकट होई, निश्चय नरसिंह सुमरे सोई।
रोग ग्रसित जो ध्यावे कोई, ताकि काया कंचन होई।
डाकिनी-शाकिनी प्रेत बेताला, ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला।
प्रेत पिशाच सबे भय खाए, यम के दूत निकट नहीं आवे।
सुमर नाम व्याधि सब भागे, रोग-शोक कबहूं नही लागे।
जाको नजर दोष हो भाई, सो नरसिंह चालीसा गाई।
हटे नजर होवे कल्याना, बचन सत्य साखी भगवाना।
जो नर ध्यान तुम्हारो लावे, सो नर मनवांछित फल पावे।
बनवाए जो मंदिर ज्ञानी, हो जावे वह नर जग मानी।
नित-प्रति पाठ करे इक बारा, सो नर रहे तुम्हारा प्यारा।
नरसिंह चालीसा जो जन गावे, दुःख दरिद्र ताके निकट न आवे।
चालीसा जो नर पढ़े-पढ़ावे, सो नर जग में सब कुछ पावे।
यह श्री नरसिंह चालीसा, पढ़े रंक होवे अवनीसा।
जो ध्यावे सो नर सुख पावे, तोही विमुख बहु दुःख उठावे।
शिव स्वरूप है शरण तुम्हारी, हरो नाथ सब विपत्ति हमारी।
॥ दोहा ॥
चारों युग गायें तेरी महिमा अपरम्पार।
निज भक्तनु के प्राण हित लियो जगत अवतार॥
नरसिंह चालीसा जो पढ़े प्रेम मगन शत बार।
उस घर आनंद रहे वैभव बढ़े अपार॥
॥ Doha ॥
Maas Vaishakh Kritika Yut, Haran Mahee Ko Bhaar.
Shukla Chaturdashi Som Din, Liyo Narsingh Avataar॥
Dhanya Tumhaaro Singh Tanu, Dhanya Tumhaaro Naam.
Tumre Sumanan Se Prabhu, Pooran Ho Sab Kaam॥
॥ Chaupai ॥
Narsingh Dev Mein Sumarun Tohi, Dhan Bal Vidya Daan De Mohi.
Jay Jay Narsingh Kripala, Karo Sada Bhaktan Pratipala.
Vishnu Ke Avataar Dayala, Mahakal Kaalan Ko Kaala.
Naam Anek Tumhaaro Bakhano, Alpabuddhi Mein Na Kachu Jaano.
Hiranyakashipu Nrip Ati Abhimani, Tehi Ke Bhaar Mahee Akulani.
Hiranyakashipu Kayadhu Ke Jaaye, Naam Bhakt Prahlad Kahaye.
Bhakt Bana Vishnu Ko Daasa, Pita Kiyo Maaran Parasaya.
Astra-Shastra Maare Bhuj Danda, Agnidaah Kiyo Prachanda.
Bhakt Hetu Tum Liyo Avataara, Dusht-Dalan Haran Mahibhaara.
Tum Bhaktan Ke Bhakt Tumhare, Prahlad Ke Praan Piyaare.
Pragat Bhaye Fadkar Tum Khamba, Dekh Dusht-Dal Bhaye Achamba.
Khadag Jihva Tanu Sundar Saaja, Urdhva Kesh Mahadashtr Viraja.
Tapt Svarna Sam Badan Tumhaara, Ko Varne Tumharo Vistara.
Roop Chaturbhuj Badan Vishala, Nakh Jihva Hai Ati Vikala.
Swarna Mukut Badan Ati Bhaari, Kanan Kundal Ki Chhavi Nyari.
Bhakt Prahlad Ko Tumne Ubaara, Hiranyakashipu Khal Kshan Mah Maara.
Brahma Vishnu Tumhe Nit Dhyaave, Indra Mahesh Sada Man Laave.
Veda Puran Tumharo Yash Gaave, Shesh Sharada Paarn Paave.
Jo Nar Dharo Tumharo Dhyaan, Taako Hoy Sada Kalyana.
Traahi-Traahi Prabhu Dukh Nivaaro, Bhav Bandhan Prabhu Aap Hi Taarao.
Nitya Jape Jo Naam Tihara, Dukh Vyadhi Ho Nistara.
Santaan-Heen Jo Jaap Karaye, Man Ichhit So Nar Sut Paave.
Bandhya Naari Susantaan Ko Paave, Nar Daridra Dhani Ho Jaawe.
Jo Narsingh Ka Jaap Karave, Taahi Vipatti Sapne Nahi Aave.
Jo Kamna Kare Man Maahi, Sab Nishchay So Siddh Hui Jaahi.
Jeevan Mein Jo Kachu Sankat Hoee, Nishchay Narsingh Sumre Soee.
Rog Grasit Jo Dhyaave Koi, Taaki Kaaya Kanchan Hoee.
Daakini-Shaakini Pret Betala, Grah-Vyadhi Aru Yam Vikala.
Pret Pishaach Sabe Bhay Khaaye, Yam Ke Doot Nikat Nahi Aave.
Sumar Naam Vyadhi Sab Bhaage, Rog-Shok Kabhu Nahi Laage.
Jaako Nazar Dosh Ho Bhai, So Narsingh Chalisa Gaaee.
Hate Nazar Hove Kalyana, Bachan Satya Saakhi Bhagwana.
Jo Nar Dhyaan Tumhaaro Laave, So Nar Manvanchhit Phal Paave.
Banwaaye Jo Mandir Gyaani, Ho Jaave Wah Nar Jag Maanee.
Nit-Prati Paath Kare Ik Baara, So Nar Rahe Tumhaara Pyaara.
Narsingh Chalisa Jo Jan Gaave, Dukh Daridra Taake Nikat Na Aave.
Chalisa Jo Nar Padhe-Padhave, So Nar Jag Mein Sab Kuch Paave.
Yah Shree Narsingh Chalisa, Padhe Rank Hove Avaneesa.
Jo Dhyaave So Nar Sukh Paave, Tohee Vimukh Bahu Dukh Uthave.
Shiv Swaroop Hai Sharan Tumhaari, Haro Naath Sab Vipatti Hamari.
॥ Doha ॥
Chaaron Yug Gaayein Teri Mahima Aparimpaar.
Nij Bhaktan Ke Praan Hit Liyo Jagat Avataar॥
Narsingh Chalisa Jo Padhe Prem Magan Shat Baar.
Us Ghar Anand Rahe Vaibhav Badhe Apaar॥
॥ दोहा ॥
मास वैशाख कृतिका युत, हरण मही को भार।
शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन, लियो नरसिंह अवतार॥
धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम।
तुमरे सुमरन से प्रभु, पूरन हो सब काम॥
भगवान विष्णु ने वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को सोमवार के दिन इस धरती से पाप का अंत करने के लिए नरसिंह अवतार लिया था। आपका यह सिंह रूप बहुत ही धन्य है और आपका नाम भी धन्य है। आपके केवल सुमिरन मात्र से ही हमारे सभी काम बन जाते हैं।
॥ चौपाई ॥
नरसिंह देव में सुमरों तोहि, धन बल विद्या दान दे मोहि।
जय जय नरसिंह कृपाला, करो सदा भक्तन प्रतिपाला।
विष्णु के अवतार दयाला, महाकाल कालन को काला।
नाम अनेक तुम्हारो बखानो, अल्पबुद्धि में ना कछु जानों।
हे नरसिंह भगवान!! मैं आपका ही ध्यान करता हूँ। अब आप मुझे धन, शक्ति व विद्या का दान दें। नरसिंह भगवान की जय हो, जय हो। वे हम सभी पर कृपा करते हैं और अपने भक्तों के मान की रक्षा करते हैं। वे भगवान विष्णु के ऐसे अवतार हैं जो महाकाल के भी काल हैं। आपके तो अनेक नाम हैं और मैं अज्ञानी उन्हें कैसे जान पाऊंगा।
हिरणाकुश नृप अति अभिमानी, तेहि के भार मही अकुलानी।
हिरणाकुश कयाधू के जाये, नाम भक्त प्रहलाद कहाये।
भक्त बना विष्णु को दासा, पिता कियो मारन परसाया।
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा, अग्निदाह कियो प्रचंडा।
एक समय में यह धरती हिरण्यकश्यप के अधर्म से बहुत भारी हो गयी थी और उसे सहन नहीं कर पा रही थी। तब हिरण्यकश्यप का अपनी पत्नी से प्रह्लाद नाम का पुत्र हुआ। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त बन गया। यह देखकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को नाना प्रकार की यातनाएं दी। उसने अस्त्र-शस्त्रों सहित कई माध्यम से प्रह्लाद को दंड देने या उसका वध करने का प्रयास किया और अंत में उसे अपनी बहन होलिका के साथ अग्नि में बिठा दिया।
भक्त हेतु तुम लियो अवतारा, दुष्ट-दलन हरण महिभारा।
तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे, प्रह्लाद के प्राण पियारे।
प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा, देख दुष्ट-दल भये अचंभा।
खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा, ऊर्ध्व केश महादष्ट्र विराजा।
तब आपने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह का अवतार लिया। उस रूप में आप दुष्टों की सेना का नाश करके धरती को पापमुक्त करना चाहते थे। भक्त आपके हैं तो आप भक्तों के हैं और उनमें भक्त प्रह्लाद तो आपको अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। उस समय आपने भवन के खंभे को फाड़ दिया और उसमें से नरसिंह अवतार में प्रकट हुए जिसे देखकर दैत्यों की सेना आश्चर्यचकित रह गयी। आपकी जीभ तलवार के समान तेज, शरीर सुंदर व बाल बिखरे हुए थे।
तप्त स्वर्ण सम बदन तुम्हारा, को वरने तुम्हरों विस्तारा।
रूप चतुर्भुज बदन विशाला, नख जिह्वा है अति विकराला।
स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी, कानन कुंडल की छवि न्यारी।
भक्त प्रहलाद को तुमने उबारा, हिरणा कुश खल क्षण मह मारा।
आपका शरीर तपते हुए सोने के समान क्रोध की अग्नि में जल रहा था और मैं किस मुहं से उसका वर्णन करूँ। आपकी चार भुजाएं थी और शरीर बहुत ही विशाल था। आपके नाखून अत्यधिक बड़े और प्रलयंकारी थे। आपने सिर पर सोने का मुकुट और कानो में कुंडल पहन रखे थे। आपने हिरण्यकश्यप का अपने नाखूनों से वध कर दिया और भक्त प्रह्लाद का उद्धार किया।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हे नित ध्यावे, इंद्र महेश सदा मन लावे।
वेद पुराण तुम्हरो यश गावे, शेष शारदा पारन पावे।
जो नर धरो तुम्हरो ध्याना, ताको होय सदा कल्याना।
त्राहि-त्राहि प्रभु दुःख निवारो, भव बंधन प्रभु आप ही टारो।
भगवान ब्रह्मा व विष्णु आपका ही ध्यान करते हैं और इंद्र देव व महादेव का मन आपके ऊपर ही लगा हुआ है। वेदों व पुराणों में भी आपकी महिमा का वर्णन किया गया है और शेषनाग व शारदा माता भी आपको पार नहीं पा सकते हैं। जो मनुष्य आपका ध्यान करता है, उसका कल्याण हो जाता है। हे प्रभु!! अब आप मेरे दुःख दूर कर दीजिये और इस विश्व के बंधनों से मुक्त कर दीजिये।
नित्य जपे जो नाम तिहारा, दुःख व्याधि हो निस्तारा।
संतान-हीन जो जाप कराये, मन इच्छित सो नर सुत पावे।
बंध्या नारी सुसंतान को पावे, नर दरिद्र धनी होई जावे।
जो नरसिंह का जाप करावे, ताहि विपत्ति सपनें नही आवे।
जो नरसिंह भगवन का नाम प्रतिदिन लेता है, उसे सभी तरह के दुखों व रोगों से मुक्ति मिलती है। यदि किसी मनुष्य को संतान नहीं हो रही है तो नरसिंह चालीसा के जाप से उसे संतान मिलती है। बाँझ नारी को योग्य संतान मिलती है तो निर्धन को धन मिलता है। जो भी नरसिंह भगवान की चालीसा का जाप करवाता है, उसके ऊपर किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आती है।
जो कामना करे मन माही, सब निश्चय सो सिद्ध हुई जाही।
जीवन मैं जो कछु संकट होई, निश्चय नरसिंह सुमरे सोई।
रोग ग्रसित जो ध्यावे कोई, ताकि काया कंचन होई।
नरसिंह भगवान की कृपा से हमारे मन की हरेक कामना पूरी होती है। नरसिंह भगवान के ध्यान से हमारे जीवन के सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति के द्वारा नरसिंह चालीसा का पाठ करने से वह रोगमुक्त हो जाता है और उसका शरीर पहले से ज्यादा बलवान हो जाता है।
डाकिनी-शाकिनी प्रेत बेताला, ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला।
प्रेत पिशाच सबे भय खाए, यम के दूत निकट नहीं आवे।
सुमर नाम व्याधि सब भागे, रोग-शोक कबहूं नही लागे।
नरसिंह चालीसा से डाकिनी, शाकिनी, प्रेत, बेताल, ग्रह दोष, यमदूत, काल, पिशाच, भूत इत्यादि सब भाग जाते हैं और वे हमारे निकट नहीं आते हैं। नरसिंह भगवान के सुमिरन से ही यह सभी बाधाएं दूर भाग जाती हैं और हमें किसी भी प्रकार का रोग या शोक नहीं सताता है।
जाको नजर दोष हो भाई, सो नरसिंह चालीसा गाई।
हटे नजर होवे कल्याना, बचन सत्य साखी भगवाना।
जो नर ध्यान तुम्हारो लावे, सो नर मनवांछित फल पावे।
यदि किसी व्यक्ति के ऊपर किसी की काली नज़र है या काला जादू किया हुआ है या उसे किसी अन्य तरह का नज़र दोष है तो वह सभी भी नरसिंह चालीसा के माध्यम से दूर हो जाते हैं। जो मनुष्य नरसिंह जी की चालीसा का पाठ करता है, उसके मन की हरेक इच्छा पूरी हो जाती है।
बनवाए जो मंदिर ज्ञानी, हो जावे वह नर जग मानी।
नित-प्रति पाठ करे इक बारा, सो नर रहे तुम्हारा प्यारा।
नरसिंह चालीसा जो जन गावे, दुःख दरिद्र ताके निकट न आवे।
जो व्यक्ति नरसिंह भगवान का मंदिर बनवाता है, उसका इस विश्व में मान बढ़ता है। जो प्रतिदिन एक बार भगवान नरसिंह चालीसा का पाठ करता है, वह नरसिंह भगवान को बहुत प्रिय होता है। जो नरसिंह चालीसा का जाप करता है, उसे दुःख, गरीबी इत्यादि नहीं सताती है।
चालीसा जो नर पढ़े-पढ़ावे, सो नर जग में सब कुछ पावे।
यह श्री नरसिंह चालीसा, पढ़े रंक होवे अवनीसा।
जो ध्यावे सो नर सुख पावे, तोही विमुख बहु दुःख उठावे।
शिव स्वरूप है शरण तुम्हारी, हरो नाथ सब विपत्ति हमारी।
जो नरसिंह देव की चालीसा को पढ़ता है या पढ़वाता है, उसे इस जगत में सब कुछ मिल जाता है। इस नरसिंह चालीसा को पढ़ने से तो रंक भी राजा बन जाता है। जो नरसिंह भगवान का ध्यान करता है, वह सुख को पाता है और जो उनसे मुख मोड़ लेता है, वह दुःख का भागी बनता है। हम सभी आपकी शरण में आये हैं और अब आप हमारी सब विपत्तियों को दूर कर दीजिये।
॥ दोहा ॥
चारों युग गायें तेरी महिमा अपरम्पार।
निज भक्तनु के प्राण हित लियो जगत अवतार॥
नरसिंह चालीसा जो पढ़े प्रेम मगन शत बार।
उस घर आनंद रहे वैभव बढ़े अपार॥
आपकी महिमा का वर्णन तो चारों युगों में हो रहा है। आपने अपने भक्त प्रह्लाद के मान की रक्षा करने के लिए इस धरती पर अवतार लिया था। जो कोई भी सौ बार प्रेम सहित नरसिंह चालीसा का पाठ कर लेता है, उसके घर में आनंद व वैभव कभी समाप्त नहीं होता है।
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