श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत विशेषकर उन दंपत्तियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो संतान की कामना करते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और उनकी कृपा से संतान प्राप्ति की जाती है। इस व्रत की विस्तृत कथा इस प्रकार है:
प्राचीन काल में महिष्मती नगरी नामक एक सुंदर नगर था, जहां महिजित नामक राजा राज्य करता था। राजा महिजित धर्मपरायण, न्यायप्रिय और प्रजापालक थे, लेकिन उन्हें एक बहुत बड़ी चिंता सताती रहती थी कि उनके कोई संतान नहीं थी। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञ किए, लेकिन कोई भी उपाय सफल नहीं हुआ।
राजा महिजित की चिंता को देखकर उनकी प्रजा भी चिंतित रहने लगी। एक दिन, नगर के सभी ब्राह्मण और प्रजाजन मिलकर राजा के पास गए और उनकी समस्या का समाधान खोजने का प्रयास किया। ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि वे महर्षि लोमश के पास जाकर अपनी समस्या का समाधान पूछें, क्योंकि महर्षि लोमश तपस्वी और दिव्य दृष्टि वाले थे।
राजा महिजित तुरंत महर्षि लोमश के आश्रम पहुंचे और अपनी समस्या बताई। महर्षि लोमश ने ध्यानमग्न होकर राजा की समस्या का कारण जाना। ध्यान की अवस्था में महर्षि ने देखा कि राजा महिजित ने अपने पूर्व जन्म में एक बड़ा पाप किया था, जिसके कारण उन्हें संतान सुख से वंचित रहना पड़ रहा था। महर्षि लोमश ने बताया:
“हे राजन, तुम्हारे पूर्व जन्म की एक घटना के कारण तुम्हें संतान सुख नहीं मिल रहा है। एक बार तुमने प्यासे होकर जंगल में भ्रमण किया। वहाँ तुम्हें एक जलाशय मिला, लेकिन वहाँ पहले से ही एक प्यासी गाय का बछड़ा पानी पी रहा था। तुमने अपने प्यास की चिंता में बछड़े को हटाकर पहले स्वयं पानी पिया। उस बछड़े की प्यास बुझने से पहले ही तुमने उसे जलाशय से दूर कर दिया। इस पाप के कारण तुम्हें इस जन्म में संतान सुख नहीं मिल रहा है।”
महर्षि लोमश ने राजा को समाधान भी बताया। उन्होंने कहा: “श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं, का व्रत विधिपूर्वक करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हें संतान सुख की प्राप्ति होगी।”
राजा महिजित ने महर्षि के निर्देशानुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। उन्होंने पूर्ण विधि-विधान से व्रत रखा और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की। व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी और अपने सामर्थ्यानुसार गरीबों को भोजन करवाया।
व्रत के प्रभाव से राजा की रानी ने कुछ समय बाद एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र बड़ा होकर प्रजा का पालन-पोषण करने वाला, धर्मपरायण और पराक्रमी राजा बना। इस प्रकार श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत ने राजा महिजित को संतान सुख प्रदान किया और उनके जीवन में खुशियाँ लौटाईं।
इस व्रत कथा को सुनने और पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, सभी पापों से मुक्ति मिलती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए इस व्रत का विशेष महत्व है और इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए।
कथा-सार
पाप कर्म करते समय मनुष्य यह नहीं सोचता कि वह क्या कर रहा है, परन्तु शास्त्रों से विदित होता है कि मनुष्य का छोटे-से-छोटा पाप भी उसे भयंकर दुख भोगने को विवश कर देता है, अतः मनुष्य को पाप कर्म करने से डरना चाहिये, क्योंकि पाप नामक यह दैत्य जन्म-जन्मान्तर तक उसका पीछा नहीं छोड़ता। प्राणी को चाहिये कि सत्यव्रत का पालन करते हुए भगवान के प्रति पूरी श्रद्धा व भक्ति रखे और यह बात सदैव याद रखे कि किसी के दिल को दुखाने से बड़ा पाप दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।