॥दोहा॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥1
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥2
॥चौपाई॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ 1
जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥2
रूप चतुर्भुज धारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥3
जग में पाप बुद्धि जब होती।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥4
तब ही मातु का निज अवतारी।
पाप हीन करती महतारी॥5
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥6
रामचरित जो रचे बनाई।
आदि कवि की पदवी पाई॥7
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥8
तुलसी सूर आदि विद्वाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥9
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।
केव कृपा आपकी अम्बा॥10
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥11
पुत्र करहिं अपराध बहूता।
तेहि न धरई चित माता॥12
राखु लाज जननि अब मेरी।
विनय करउं भांति बहु तेरी॥13
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥14
मधुकैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥15
समर हजार पाँच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥16
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥17
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥18
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
क्षण महु संहारे उन माता॥19
रक्त बीज से समरथ पापी।
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥20
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
बारबार बिन वउं जगदंबा॥21
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥22
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥23
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥24
को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥25
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥26
रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥27
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥28
दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥29
नृप कोपित को मारन चाहे।
कानन में घेरे मृग नाहे॥30
सागर मध्य पोत के भंजे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥31
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥32
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करई न कोई॥33
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥34
करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥35
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥36
भक्ति मातु की करैं हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥37
बंदी पाठ करें सत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥38
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।
कीजै कृपा दास निज जानी।39
॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥1
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥2
Doha
Janak Janani Padam Raj, Nij Mastak Par Dhari !
Bandau Matu Saraswati, Buddhi Bal De Datari !!1
Purn Jagat Mein Vyapt Tav, Mahima Amit Anantu !
Dushtjano Ke Paap Ko, Matu Tuhi Ab Hantu !!2
Chaupai
Jai Shri Sakal Budhi Balrasi !
Jai Sarvagya Amar Avinasi !!1
Jai Jai Jai Venakar Dhari !
Karti Sada Suhans Savari !!2
Roop Chaturbhujdhari Mata !
Sakal Vishv Andar Vikhyata !!3
Jag Mein Paap Budhi Jab Hoti !
Tab hi Dharm Ki Phiki Jyoti !!4
Tab hi Matu ka Nij Avtari !
Paap Heen Karti Mahitari !!5
Balmiki Ji The hatyara !
Tav Prsad Jane Sansara !!6
Ramchrit Jo Rache Banai !
Aadi Kavi Ki Padvi Pai !!7
Kalidas Jo Bhae Vikhata !
Teri Kripa Drishti Se Mata !!8
Tulsi Sur Aadi Vidvana !
Bhaye Aur Jo Gyani Nana !!9
Tinhe Na Aur Raheu Avlamba !
Kev Kripa Aapki Amba !!10
Karhu Kripa Soi Matu Bhavani !
Dukhit Deen Nij Dashi Jani !!11
Putra Karahin Apradh Bahuta !
Tehi Na dharihi Chitt Mata !!12
Rakhu Laj Janani Ab Meri !
Vine Karu Bahu Bhanti bhu teri !!13
Mai Anath Teri Avlamba !
Kripa Karhu Jai Jai Jagdamba !!14
Madhu Kaitabh Jo Ati Balvana !
Bahuyudh Vishnu se Thana !!15
Samar Hajar Panch Mein Ghora !
Phir Bhi Mukh Unse Nahi Moda !!16
Matu Sahae kinh Tehi Kala !
Budhi Viprit bahi Khalhala !!17
Tehi Mritu Bhai Khal Keri !
Purvahu Matu Manorath Meri !!18
Chand Mund Jo The Vikhyata !
Chan Mahu Sanhare Tehi Mata !!19
Raktabij Se Samrath Papi !
Sur-Muni Hriday Dhara Sab Kampi !!20
Kateu Sir Jimi Kadli Khamba !
Baar Baar Binvau Jagdamba !!21
Jag Prasidh Jo Shumbh Nishumbha !
Chhan Me Bandhe Tahi Tu Amba !!22
Bharat-Matu Budhi Phereu Jayee !
Ramachandra Banvas Karaee !!23
Ehi Vidhi Ravan Vadh Tum Kina !
Sur Nar Muni Sabko Sukh Dina !!24
Ko Samrath Tav Yash Gun Gana !
Nigam Anadi Anant Bakhana 25
Vishnu Rudra jas kahi Na Mari !
Jinki Ho Tum Rakshakari !!26
Rakt Dantika Aur Shatakshi !
Naam Apaar Hai Danav Bhakshi !!27
Durgam Kaj Dhara Par Kina !
Durga Naam Sakal Jag Lina !!28
Durg Aadi Harani Tu Mata !
Kripa Krhu Jab Jab Sukhdata !!29
Nrip Kopit Jo Maran Chahi !
Kanan Mein Ghere Mrig Nahi !!30
Sagar Madhy Pot Ke Bhanje !
Ati Toofan Nahi Kou Sange !!31
Bhoot Pret Badha Yaa Dukh Mein !
Ho Daridra Athava Sankat Mein !!32
Naam Jape Mangal Sab hoi !
Sanshay Isame Karai Na Koi !!33
Putrahin Jo Aatur Bhai !
Sabi Chhadi Puje Ehi bhai !!34
Karai Path Nit Yah Chaalisa !
Hoy Putra Sundar Gun Isa !!35
Dhupadik Naivedy Chadhave !
Sankat Rahit Avashy Ho Jave !!36
Bhakti Matu Ki Kari Hamesha !
Nikat Na Aave Tahi Kalesha !!37
Bandi Path Kare Shat Bara!
Bandi Pash Door Ho Sara !!38
Ramsaagar bandhi hetu Bhavani !
Kijai kripa Daa Nij Jani !!39
Doha
Mata Soraj Kanti Tav, Andhakar Mam Roop !
Doban Te Raksha Krhu, Paru Na Mein Bhav-Koop !!1
Bal Buddhi Vidya Dehu Mohi, Sunhu Sarasvati Matu !
Ram sagar adam ko, Aashrae tu hi detaru !!2
।। दोहा ।।
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।।
मैं अपने माता-पिता के चरणों की धूल अपने माथे पर लगाकर अर्थात उन्हें नमस्कार कर आपकी वंदना शुरू करता हूँ। हे माँ सरस्वती!! आप मुझे बुद्धि व शक्ति प्रदान कीजिये। आप तो इस सृष्टि में हर जगह फैली हुई हैं और आपकी महिमा का कोई अंत नहीं है। रामसागर (जो इस सरस्वती चालीसा के लेखक हैं) के पाप को अब मातारानी आप ही अपनी कृपा दृष्टि से दूर कर सकती हैं।
।। चौपाई ।।
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी, जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।
जय जय जय वीणाकर धारी, करती सदा सुहंस सवारी।
हे बुद्धि व शक्ति की माता!! आपकी जय हो। आप सभी जगह वास करती हैं, आप अमर हैं और आपका विनाश नहीं किया जा सकता है, आपकी जय हो। आप वीणा को धारण की हुई हो, आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आपका वाहन हंस है और आप सदैव उसी की ही सवारी करती हो।
रूप चतुर्भुजधारी माता, सकल विश्व अन्दर विख्याता।
जग में पाप बुद्धि जब होती, जबहि धर्म की फीकी ज्योती।
तबहि मातु ले निज अवतारा, पाप हीन करती महि तारा।
आपके चार हाथ हैं और आपका यह रूप पूरे विश्व में विख्यात है अर्थात इसे हर कोई जानता है। जब कभी भी इस सृष्टि में पाप, दुष्टता की वृद्धि हो जाती है अर्थात अधर्म कार्य बढ़ने लग जाते हैं और धर्म पर चोट होने लगती है, तब-तब मातारानी आप इस धरती पर अवतार लेकर पापियों का नाश कर देती हो और धर्म की पुनर्स्थापना करती हो।
बाल्मीकि जी थे हत्यारे, तव प्रसाद जानै संसारा।
रामायण जो रचे बनाई, आदि कवि की पदवी पाई।
त्रेता युग में महर्षि वाल्मीकि पहले एक डाकू व हत्यारे थे लेकिन आपके प्रभाव से उन्हें सद्बुद्धि आयी और वे धर्म का पालन करने लगे। आपकी कृपा से ही उन्होंने महान ग्रन्थ रामायण की रचना की और आदिकवि की पदवी पायी।
कालिदास जो भये विख्याता, तेरी कृपा दृष्टि से माता।
तुलसी सूर आदि विद्धाना, भये और जो ज्ञानी नाना।
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा, केवल कृपा आपकी अम्बा।
कालिदास जी भी आपकी कृपा से ही इस सृष्टि में प्रसिद्ध हुए। तुलसीदास व सूरदास जी के ऊपर भी आपकी ही कृपा थी और उन्होंने ऐतिहासिक ग्रंथों तथा काव्यों की रचना की। उन्हें किसी और का सहारा नहीं था और आपने ही उन्हें विद्या व बुद्धि का सहारा दिया।
करहु कृपा सोइ मातु भवानी, दुखित दीन निज दासहि जानी।
पुत्र करै अपराध बहूता, तेहि न धरइ चित सुन्दर माता।
राखु लाज जननी अब मेरी, विनय करूं बहु भाँति घनेरी।
मैं अनाथ तेरी अवलम्बा, कृपा करऊ जय जय जगदम्बा।
हे माँ सरस्वती!! मुझे गरीब और अपना सेवक मान कर मुझ पर भी कृपा कीजिये। अब संतान तो कई तरह के अपराध या गलतियाँ कर देती हैं लेकिन आप अपने इस पुत्र के अपराध को मन में ना बैठाएं। आप मेरे मान-सम्मान की रक्षा कीजिये और यही मेरी आपसे विनती है। मैं अनाथ आपकी शरण में आया हूँ माँ और अब आप मुझ पर कृपा कीजिये।
मधु कैटभ जो अति बलवाना, बाहुयुद्ध विष्णू से ठाना।
समर हजार पांच में घोरा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला, बुद्धि विपरीत करी खलहाला।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी, पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।
मधु-कैटभ जो अत्यधिक शक्तिशाली राक्षस थे, उन्होंने अपने बाहुबल से भगवान विष्णु से युद्ध किया। यह युद्ध पांच हज़ार वर्ष तक चला लेकिन फिर भी वे दोनों पराजित नहीं हुए। तब आपने ही अपनी शक्ति से श्रीहरि की सहायता की और उन दोनों की बुद्धि भ्रष्ट कर दी। इसके फलस्वरूप ही भगवान विष्णु उन दोनों को पराजित कर पाने में सक्षम हुए। अब आप मेरी मनोकामना भी पूरी कर दीजिये।
चंड मुण्ड जो थे विख्याता, छण महु संहारेउ तेहिमाता।
रक्तबीज से समरथ पापी, सुरमुनि हृदय धरा सब काँपी।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा, बार बार बिनऊँ जगदम्बा।
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा, छण में वधे ताहि तू अम्बा।
चंड-मुंड राक्षस जो अत्यधिक प्रसिद्ध थे, उन्हें भी आपने युद्ध में मार गिराया। रक्तबीज नामक राक्षस जिसके नाम से सभी देवता, ऋषि-मुनि भी भय खाते थे, उसका सिर काट कर आपने उसका रक्त पी लिया और उसका संहार कर दिया। मैं बार-बार आपसे ही प्रार्थना करता हूँ। आपने इस जगत के प्रसिद्ध राक्षस शुभ-निशुंभ का भी युद्ध क्षेत्र में संहार कर दिया था।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई, रामचन्द्र बनवास कराई।
एहिविधि रावन वध तू कीन्हा, सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।
जब राजा दशरथ अपने पुत्र भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक करने वाले थे तब आपने ही भरत की माता कैकयी की बुद्धि हर ली थी और वह मंथरा की बातों में आकर श्रीराम का चौदह वर्ष का वनवास माँग बैठी थी। वहीं दूसरी ओर, आपने दुष्ट रावण की भी बुद्धि हर ली थी और उसने माता सीता का हरण कर अपना ही वध करवा लिया था। उसके अंत से सभी देवता, मनुष्य व ऋषि-मुनि प्रसन्न हो गए थे।
को समरथ तव यश गुन गाना, निगम अनादि अनंत बखाना।
विष्णु रूद्र अज सकहिन मारी, जिनकी हो तुम रक्षाकारी।
आपका गुणगान तो इस सृष्टि में हर जगह किया जा रहा है और आपका कोई अंत नहीं है। जिसकी रक्षा स्वयं आप कर रही होती हैं, उसे तो स्वयं भगवान विष्णु व शिव भी नहीं मार सकते हैं।
रक्त दन्तिका और शताक्षी, नाम अपार है दानव भक्षी।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा, दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।
दुर्ग आदि हरनी तू माता, कृपा करहु जब जब सुखदाता।
रक्त दंतिका, शताक्षी तथा दानव भक्षी जैसे आपके कई नाम हैं। आपने वे काम भी करके दिखाएं जो दिखने में असंभव लगते थे, इसी कारण संपूर्ण जगत में आपका एक नाम दुर्गा भी प्रसिद्ध हो गया। आप हमारे सभी तरह के दुखों को दूर कर देती हैं और हम पर कृपा कर सुख प्रदान करती हैं।
नृप कोपित जो मारन चाहै, कानन में घेरे मृग नाहै।
सागर मध्य पोत के भंजे, अति तूफान नहिं कोऊ संगे।
भूत प्रेत बाधा या दुःख में, हो दरिद्र अथवा संकट में।
नाम जपे मंगल सब होई, संशय इसमें करइ न कोई।
यदि किसी व्यक्ति को वहां का राजा क्रोधित होकर मारना चाहे अर्थात वह राजनीति का शिकार हो जाए, यदि वह वन में खूंखार जानवरों से घिरा हुआ हो, समुंद्र के बीच में उसकी नाव फंस जाए, आंधी-तूफान में वह फंस जाए, भूत-प्रेत-पिशाच उसे सताए या फिर उसे गरीबी या कोई अन्य संकट सता रहा हो तो उस समय उसे माँ सरस्वती का नाम लेना चाहिए। इससे उसके सभी तरह के संकट एक झटके में ही दूर हो जाएंगे। इस बात में किसी को शक नहीं करना चाहिए।
पुत्रहीन जो आतुर भाई, सबै छांड़ि पूजें एहि माई।
करै पाठ नित यह चालीसा, होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा।
यदि किसी व्यक्ति को पुत्र प्राप्ति नहीं हो रही है तो उसे सब कुछ भूल कर माँ सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। जो भी इस सरस्वती चालीसा का प्रतिदिन पाठ करता है, उसे माँ अवश्य ही सुन्दर सा पुत्र प्रदान करती हैं।
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै, संकट रहित अवश्य हो जावै।
भक्ति मातु की करैं हमेशा, निकट न आवै ताहि कलेशा।
जो भी मातारानी को धूप, दीप व नैवेद्य चढ़ाता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। जो मनुष्य नित्य रूप से मातारानी की भक्ति करता है, उसके पास किसी तरह का संकट नहीं आता है और वह सुख को प्राप्त करता है।
बंदी पाठ करें शत बारा, बंदी पाश दूर हो सारा।
राम सागर बाधि सेतु भवानी, कीजै कृपा दास निज जानी।
यदि कोई व्यक्ति कारावास में बंद है तो उसे सौ बार सरस्वती जी की चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे उसकी बंदी टूट जाती है और वह स्वतंत्र हो जाता है। रामसागर आपसे यही प्रार्थना करता है कि अब आप इस सेवक पर कृपा कीजिये और इसका उद्धार कीजिये।
।। दोहा ।।
माता सूर्य कान्ति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु, परूँ न मैं भव कूप।।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वति मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही ददातु।।
हे माँ सरस्वती!! आपका रूप सूर्य के तेज के समान प्रकाशमय है जबकि मेरा रूप तो अंधकार से घिरा हुआ है अर्थात मुझमें विद्या व बुद्धि का अभाव है। आप मुझे भवसागर में डूबने से बचा लीजिये और मेरी रक्षा कीजिये ताकि मैं इसे पार कर सकूं। हे माँ सरस्वती!! कृपा करके मेरी पुकार सुनिए और मुझे बल, बुद्धि व विद्या प्रदान कीजिये। रामसागर का सहारा आप ही हैं और अब आप हमारा उद्धार कीजिये।
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