कान्हा रे थोडा सा प्यार दे,
चरणो मे बैठा के तार दे।
ओ गौरी घुंघट उभार दे,
प्रेम की भिक्षा झोली में डाल दे॥
कान्हा रे…
प्रेम गली में आके गुजरिया,
भूल गई रे घर कि डगरिया,
जब तक साधन, तन, मन, जीवन,
सब तुझे अर्पण, प्यारे सांवरिया
माया का तुमने रंग ऐसा डाला,
बंधन मे बंध गया बाँधने वाला,
कौन रमापती कैसा ईश्वर, मैं तो हूँ गोकुल का ग्वाला,
गवाला रे थोडा सा प्यार दे, गवालिन का जीवन सवार दे ,
आत्मा-परमात्मा के मिलन का मधु मास है
यही महारास है, यही महा रास है
त्रिभुवन का स्वामी, भक्तों का दास है,
यही महारास है, यही महा रास है
कृष्ण कमल है, राधे सुवास है,
यही महारास है, यही महा रास है
ओ इसके अवलोकन की युग युग को प्यास है
यही महारास है, यही महा रास है
कान्हा रे थोडा सा प्यार दे,
चरणो मे बैठा के तार दे।
तू झूठा, वचन तेरे झूठे,
मुस्का के भोली राधा को लूटे।
मै भी हु सच्चा, वचन मेरे सच्चे,
प्रीत मेरी पक्की, तुमारे मन कच्चे।
जैसे तू रखें, वैसे रहूंगी, दुंगी परीक्षा पीड सहुंगी
स्वर्गों के सुख भी मीठे ना लागे, तू मिल जाये तो मोक्ष नाही मांगे
कान्हा रे …
सृष्टि के कण कण मै इसका आभास है,
यही महा रास है, यही महा रास है
हो तारो मै नर्तन, फुलोन मै उल्हास है
यही महारास है, यही महा रास है
मुरली की प्रतीद्वनी, दिशाओ के पास है
यही महारास है, यही महा रास है
हो अध्यात्मिक चेतना का सबमे विकास है
यही महा रास है, यही महा रास है
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