हेली म्हारी सत्संग स्वर्ग को गेलो,
दोहा – मन लोभी मन लालची,
मन चंचल चित चौर,
मन के मते न चालिए,
मन घड़ी पलक में ओर।
राम भज ले प्राणी,
या कर कर मन में सोच,
बार-बार नहीं आएगी,
मनक जन्म की मौज।
दो बात को याद रख,
जो चाहे कल्याण,
नारायण एक मौत को,
दूजो श्री भगवान।
ओ जाने मूर्ख कई समझेलो,
हेली म्हारी सत्संग स्वर्ग को गेलो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो।।
हे दया भाव को बीज बोए तो पचे,
सत को बीज संजेलों,
राम नाम को हाथ लगा ले,
यो पेड़ नहीं सूखे लो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो।।
आपणो सगो नहीं हुयो तो हेली,
किणरो सगो होवेलो,
आ गई अर्जि करले काठी गेली,
यम की मार से बचेलो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो।।
सत्संग गंगा जल में हेली,
धोले पाप रो मेलो,
झूठ कपट लालच ने त्याग दें,
बनजा गुरा जी रो चेलो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो।।
अरे सत्संग स्वर्ग निरख मन माही,
मुर्ख नही समजेलों,
कल्याण भारती सतगुरु शरने,
लूल लूल शिश धरेलो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो।।
ओ जाने मूर्ख कई समझेलो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो,
हेली मारी सत्संग स्वर्ग को गेलो।।
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