ये मेरा श्याम ही,
खाटू बुला रहा है मुझे।
दोहा – दर दर घूमे है इतने,
सहारा नहीं मिला,
दुनिया में खो गए तो,
किनारा नहीं मिला,
हम उनका साथ छोड़कर,
खाटू आ गए,
जिनकी तरफ से कोई,
इशारा नहीं मिला।
ये मेरा श्याम ही,
खाटू बुला रहा है मुझे,
गमों को छीन के मेरे,
हंसा रहा है मुझे,
ये मेरा श्याम हीं,
खाटू बुला रहा है मुझे।।
तेरी तलाश में दर-दर की,
ठोकरें खाई,
यह तेरा द्वार यह तोरण द्वार,
यह तेरा द्वार कसम से,
भा गया है मुझे,
ये मेरा श्याम हीं,
खाटू बुला रहा है मुझे।।
सहारा तूने दिया मुझको,
यह करम तेरा,
वह तू ही है जो,
पहचान दिला रहा है मुझे,
ये मेरा श्याम हीं,
खाटू बुला रहा है मुझे।।
अकेला छोड़ गया मुझको,
हर मेरा अपना,
यही हो गम यही वह गम,
यही वह गम हे जो दिन रात,
सता रहा है मुझे,
ये मेरा श्याम हीं,
खाटू बुला रहा है मुझे।।
ये मेरा श्याम हीं,
खाटू बुला रहा है मुझे,
गमों को छीन के मेरे,
हंसा रहा है मुझे,
ये मेरा श्याम हीं,
खाटू बुला रहा है मुझे।।
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