म्हारा हँसला रे,
दिया गुरुजी हेला।
दोहा – सन्त मिलन को चालिए,
तज माया अभिमान,
ज्यूँ ज्यूँ पैर धरे धरणी पे,
ज्यूँ ज्यूँ यज्ञ समान।
सन्त मिल्या इतना टळे,
काळ जाळ जम चोट,
शीश निवाया गिर पड़े,
लख पापन की पोट।
सतगुरु के दरबार में,
मन जाहिए बारम्बार,
भूली वस्तु बतावसी,
मेरे सतगुरू हैं दातार।
म्हारा हँसला रे,
दिया गुरुजी हेला,
जिनका भाग बड़ा पुण्य जागे,
सत्संग आन करेला।।
सत्संग जहाज भव सागर ऊपर,
साँचा आन चढेला,
करोड़ जुगा रा पाप जीव रा,
पल छिन मा ही जड़ेला,
म्हारा हंसला रे,
दिया गुरुजी हेला।।
सत्संग में सत मार्ग लाधे,
और कोई नहीं गेला।
सत्संग बिना भरम नी भागे,
उळजा जीव मरेला,
म्हारा हंसला रे,
दिया गुरुजी हेला।।
कागा वर्ण मिटे सत्संग में,
हँसा वर्ण मिलेला,
ऊंच नीच मिल होवे पवित्र,
समदो नीर मिलेला,
म्हारा हंसला रे,
दिया गुरुजी हेला।।
हो रे चेतन हरि रस पियो,
हीरा सू उदर भरेला,
तट त्रिवेणी ताली लागी,
मोती चूण चुगेला,
म्हारा हंसला रे,
दिया गुरुजी हेला।।
सत्संग सार और सब झूठा,
ऋषि मुनि सब के हेला,
लादुनाथ सतगत के शरणे,
नानक नाथ का चेला,
म्हारा हंसला रे,
दिया गुरुजी हेला।।
म्हारा हंसला रे,
दिया गुरुजी हेला,
जिनका भाग बड़ा पुण्य जागे,
सत्संग आन करेला।।
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