अर्जी है तुमसे सौ सौ बार हे हरी,
बिन पग धोये ना करिहों गंगा पार हे हरी,
चाहे तार दे हरि चाहे मार दे हरि,
चाहे तार दो हरी चाहे मार दो हरी।।
गौतम ऋषि की नारी अहिल्या,
चरण छुअत से तारी,
कृपा करो ये रोजी मेरी,
काठ की नाव हमारी,
एहि नइया से पल रह्यो है,
परिवार हे हरी
बिन पग धोये ना करिहों गंगा पार हे हरी,
चाहे तार दो हरी चाहे मार दो हरी।।
केवट प्रभु के चरण धूल के,
चरणामृत पी डारी,
नइया में बिठाया प्रभु को,
गंगा पार उतारी,
का दैहों उतराई,
सोच विचार में हरि,
बिन पग धोये ना करिहों गंगा पार हे हरी,
चाहे तार दो हरी चाहे मार दो हरी।।
हीरा जड़ी अंगुठी प्रभु को,
दीनी सीता माई,
ये लो केवट भइया,
आज अपनी उतराई,
अबकी बार ना लैहों,
लौटते मे दैदिहों उसपार हे हरी,
बिन पग धोये ना करिहों गंगा पार हे हरी,
चाहे तार दो हरी चाहे मार दो हरी।।
दशरथ नन्दन हे रघुराई,
आप ही नाव चलैया,
सारे जग के पालन हारे,
आप हो पार लगैया,
आवें हम द्वार तिहारे,
उतारिहों तुम पार हे हरी,
बिन पग धोये ना करिहों गंगा पार हे हरी,
चाहे तार दो हरी चाहे मार दो हरी।।
अर्जी है तुमसे सौ सौ बार हे हरी,
बिन पग धोये ना करिहों गंगा पार हे हरी,
चाहे तार दे हरि चाहे मार दे हरि,
चाहे तार दो हरी चाहे मार दो हरी।।
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