काहे रोए यहाँ तेरा कोई नहीं,
दोहा – दो दिन खेर मना आपणी,
दो दिन सजा ले मेला,
रो मत दो दिन हरि ने भज ले,
जन्म मरण सुधरेला।
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नहीं,
किसको सुनाए यहाँ कोई नही,
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नही।।
लाख जतन कर जग रिश्तों के,
तेरा है तूझे कोई ना रोके,
एक पेड़ के पत्ते लाखों,
ले गई लुट के पवन के झोंके,
मेरा मेरा मत कर बन्दे,
हरि करे सो होए वही,
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नही।।
तू ही तेरा है परमेश्वर,
तुझसे बड़ा कोई ईश नही है,
खोज ले अपने मन के भीतर,
तुझसे परे जगदीश नहीं है,
जो मन अन्दर हरि को पावे,
जन्म जन्म तक खोए नही,
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नही।।
तुलसी मन में शबरी वन में,
जागे तब रघुनाथ मिले,
हो बैरागन मीरा जागी,
घट घट में प्रभु साथ मिले,
अबके ‘छोटू’ जाग जा ऐसे,
हरि मिलन तक सोए नही,
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नही।।
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नही,
किसको सुनाए यहाँ कोई नही,
काहे रोए यहाँ तेरा कोई नही।।
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