आया आया शरण तेरी साँवरे,
तेरे चरणों का एक अभिलाषी,
दे दे दर्शन हमें तू साँवरे,
तेरे चरणों का में एक अभिलाषी।।
पूजा अर्चन तेरी में जानू प्रभु,
फिर भी कृपा तुम्हारी हमें चाहिए,
जिस भी हूँ हूँ तो तुम्हारा प्रभु,
तेरे चरणों का एक अभिलाषी।।
जीव्हा लेती नही नाम तेरा कभी,
न ही हाथों से माला तुम्हारी जपी,
न ब्रत तप किये मैंने प्रभुवर तेरे,
फिर भी चरणों का तेरे में अभिलाषी।।
जन्मो जन्मो का ‘राजेन्द्र’ बड़ा पातकी,
तेरी कृपा के काबिल नही हूँ मगर,
मैं भला या बुरा जैसा भी हूँ तेरा,
तेरे चरणों का हूँ एक अभिलाषी।।
आया आया शरण तेरी साँवरे,
तेरे चरणों का एक अभिलाषी,
दे दे दर्शन हमें तू साँवरे,
तेरे चरणों का में एक अभिलाषी।।
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