हे स्वामिनी मम अभिलाष यही,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ,
बिठला के तुम्हे मन मंदिर में,
तेरी सेवा का सुख पाया करूँ,
हे स्वामिनी मम अभिलाष यहीं,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ।।
तर्ज – हे मुरलीधर छलिया मोहन।
ब्रज के जिस पथ पर हे श्यामा,
प्रीतम के संग विचरती हो,
ब्रज के जिस पथ पर हे श्यामा,
प्रीतम के संग विचरती हो,
उस पावन पथ को हे श्यामा,
पलकों से नित बुहारा करूँ,
हे स्वामिनी मम अभिलाष यहीं,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ।।
इन चरणों का नित ध्यान धरे,
तेरे प्रीतम और सब सखियाँ,
इन चरणों का नित ध्यान धरे,
तेरे प्रीतम और सब सखियाँ,
उन चरणों को नित नैनो की,
गगरी के जल से पखारा करूँ,
हे स्वामिनी मम अभिलाष यहीं,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ।।
दासी की अब अभिलाष यही,
चरणों की तेरी सेवा मिले,
दासी की अब अभिलाष यही,
चरणों की तेरी सेवा मिले,
हे प्यारी तेरी इस प्रीति पे,
तन मन और प्राण मैं वारा करूँ,
हे स्वामिनी मम अभिलाष यहीं,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ।।
हे स्वामिनी मम अभिलाष यही,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ,
बिठला के तुम्हे मन मंदिर में,
तेरी सेवा का सुख पाया करूँ,
हे स्वामिनी मम अभिलाष यहीं,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ।।
Discover more from Brij Ke Rasiya
Subscribe to get the latest posts sent to your email.