विनती करता करता मैं तो,
हार गया सरकार रे,
अब तो सुणल्यो खाटू वाला,
थारी ही दरकार रे।।
तर्ज – थाली भरकर लाई।
भक्ता से क्या की नाराजी,
भक्त थारा तने याद करे,
थाके आया पार पड़ेली,
था बिन पार पड़े ना रे,
अब तो आजा श्याम धणी,
ओ लीले रा असवार रे,
अब तो सुनल्यो खाटु वाला,
थारी ही दरकार रे।।
भक्ता ने तो बहुत भरोसो,
एक दिन बाबो आवेलो,
भक्त बिना यो खाटू वालो,
एक पल नहीं रुक पावेलो,
भक्ता की अरदास सुनके,
अब तो आजा श्याम रे,
अब तो सुनल्यो खाटु वाला,
थारी ही दरकार रे।।
कइयाँ बैठ्या हो थे बाबा,
मुख से कुछ तो बोलो रे,
थाके बोल्या मैं तो जाना,
गलती म्हासे हुई जो रे,
भूल चूक की कान पकड़कर,
थासु माफ़ी माँगा रे,
अब तो सुनल्यो खाटु वाला,
थारी ही दरकार रे।।
मैं तो सुण्या हाँ खाटू वालो,
बहुत बड़ो कृपालु रे,
भक्त की पीड़ा देख ना पावे,
झटपट दौड़यो आवे रे,
‘गोनू’ के तो मन की बाबा,
अब तो आस पूरा जा रे,
अब तो सुनल्यो खाटु वाला,
थारी ही दरकार रे।।
विनती करता करता मैं तो,
हार गया सरकार रे,
अब तो सुणल्यो खाटू वाला,
थारी ही दरकार रे।।
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