॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दूषित भाव सुधार।
राणी सती सुविमल यश, बरणौं मति अनुसार॥
कामक्रोध मदलोभ में, भरम रह्यो संसार।
शरण गहि करूणामयी, सुख सम्पत्ति संचार॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मानी।
नमो नमो संकटकूँ हरनी, मन वांछित पूरन सब करनी।
नमो नमो जय जय जगदम्बा, भक्तन काज न होय विलम्बा।
नमो नमो जय-जय जग तारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी।
दिव्य रूप सिर चूँदर सोहे, जगमगात कुण्डल मन मोहे।
माँग सिन्दूर सुकाजन टीकी, गज मुक्ता नथ सुन्दर नीकी।
गल बैजन्ती माल बिराजे, सोलहुँ साज बदन पे साजे।
धन्य भाग्य गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को।
तनधन दास पतिवर पाये, आनन्द मंगल होत सवाये।
जालीराम पुत्र वधू होके, वंश पवित्र किया कुल दोके।
पति देव रण माँय झुझारे, सती रूप हो शत्रु संहारे।
पति संग ले सद् गति पाई, सुर मन हर्ष सुमन बरसाई।
धन्य धन्य उस राणी जी को, सुफल हुवा कर दरस सती का।
विक्रम तेरा सौ बावनकूँ, मंगसिर बदी नौमी मंगलकूँ।
नगर झुँझुनु प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता।
दूर देश के यात्री आवे, धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
उछाड़-उछाड़ते हैं आनन्द से, पूजा तन मन धन श्री फल से।
जात जडूला रात जगावे, बाँसल गोती सभी मनावे।
पूजन पाठ पठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चरते।
नाना भाँति-भाँति पकवाना, विप्रजनों को न्यूत जिमाना।
श्रद्धा भक्ति सहित हरषाते, सेवक मन वाँछित फल पाते।
जय जय कार करे नर नारी, श्री राणी सती की बलिहारी।
द्वार कोट नित नौबत बाजे, होत श्रृंगार साज अति साजे।
रत्न सिंहासन झलके नीको, पल-पल छिन-छिन ध्यान सती को।
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला।
भक्त सुजन की सकड़ भीड़ है, दर्शन के हित नहीं छीड़ है।
अटल भुवन में ज्योति तिहारी, तेज पुंज जग माँय उजियारी।
आदि शक्ति में मिली ज्योति है, देश देश में भव भौति है।
नाना विधि सो पूजा करते, निशदिन ध्यान तिहारा धरते।
कष्ट निवारिणी, दुःख नाशिनी, करूणामयी झुँझुनू वासिनी।
प्रथम सती नारायणी नामां, द्वादश और हुई इसि धामा।
तिहूँ लोक में कीर्ति छाई, श्री राणी सती की फिरी दुहाई।
सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घण्टा ध्वनि टँकारे।
राग छत्तिसों बाजा बाजे, तेरहुँ मण्ड सुन्दर अति साजे।
त्राहि त्राहि मैं शरण आपकी, पूरो मन की आश दास की।
मुझको एक भरोसो तेरो, आन सुधारो कारज मेरो।
पूजा जप तप नेम न जानूँ, निर्मल महिमा नित्य बखानूँ।
भक्तन की आपत्ति हर लेनी, पुत्र पौत्र वर सम्पत्ति देनी।
पढ़े यह चालीसा जो शतबारा, होय सिद्ध मन माँहि बिचारा।
गोपीराम (मैं) शरण ली थारी, क्षमा करो सब चूक हमारी।
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जग जीवन आधार।
बिगड़ी बात सुधारिये, सब अपराध बिसार॥
॥ Doha ॥
Shri guru pad pankaj naman, doosrit bhav sudhaar।
Rani Sati suvimal yash, baranau mati anusaar॥
Kaamkrodh madlobh mein, bharam rahyo sansaar।
Sharan gahi karunamayi, sukh sampatti sanchaar॥
॥ Chaupai ॥
Namo namo Shri Sati Bhavani, jag vikhyat sabhi man maani।
Namo namo sankatkun harni, man vanchhit pooran sab karni॥
Namo namo jai jai Jagdamba, bhaktan kaaj na hoy vilamba।
Namo namo jai-jai jag taarini, sevak jan ke kaaj sudhaarini॥
Divya roop sir chunar sohe, jagmagat kundal man mohe।
Mang sindoor sukajan tiki, gaj mukta nath sundar neeki॥
Gal Baijanti maal biraje, solahum saaj badan pe saaje।
Dhanya bhagya Gursaamalji ko, mahm Dokwa janm Sati ko॥
Tandan daas pativar paye, aanand mangal hot savaaye।
Jaliram putra vadhu hoke, vansh pavitra kiya kul doke॥
Pati dev ran maay jhujhare, Sati roop ho shatru sanhare।
Pati sang le sadgati paayi, sur man harsh suman barsai॥
Dhanya dhanya us Rani ji ko, sufal huwa kar daras Sati ka।
Vikram tera sau bavankun, Mangsir badi naumi mangalkun॥
Nagar Jhunjhunu pragati mata, jag vikhyat sumangal data।
Door desh ke yaatri aave, dhoop deep naivedya chadhave॥
Uchhad-uchhadte hain anand se, pooja tan man dhan Shri fal se।
Jaat Jadula raat jagave, Bansal goti sabhi manave॥
Poojan path pathan dvij karte, ved dhwani mukh se uccharte।
Naana bhaanti-bhaanti pakvaana, viprajanon ko nyut jimana॥
Shraddha bhakti sahit harshaate, sevak man vanchhit fal paate।
Jai jai kaar kare nar naari, Shri Rani Sati ki balihaari॥
Dwar kot nit naubat baje, hot shringar saaj ati saaje।
Ratn sinhasan jhalke niko, pal-pal chhin-chhin dhyaan Sati ko॥
Bhaadr krishn maavas din leela, bharta mela rang rangeela।
Bhakt sujan ki sakad bheed hai, darshan ke hit nahin chhid hai॥
Atal bhuvan mein jyoti tihari, tej punj jag maay ujiyari।
Aadi shakti mein mili jyoti hai, desh desh mein bhav bhauti hai॥
Naana vidhi so pooja karte, nishdin dhyaan tihara dharte।
Kasht nivarini, dukh naashini, karunamayi Jhunjhunu vasini॥
Pratham Sati Narayani nama, dvadash aur hui isi dhama।
Tihum lok mein kirti chhai, Shri Rani Sati ki phiri duhai॥
Subah shaam aarti utare, naubat ghanta dhwani tankare।
Raag chhattisau baaja baje, terahun mand sundar ati saaje॥
Traahi traahi main sharan aapki, pooro man ki aash daas ki।
Mujhko ek bharoso tero, aan sudharo kaaraj mero॥
Pooja jap tap nem na jaanun, nirmal mahima nitya bakhanun।
Bhaktan ki aapatti har leni, putra pautra var sampatti deni॥
Padhe yah chaalisa jo shatbaara, hoy siddh man maahin bichara।
Gopiram (main) sharan li thari, kshama karo sab chook humaari॥
॥ Doha ॥
Dukh aapad vipda haran, jag jeevan aadhaar।
Bigdi baat sudhariye, sab apraadh bisaar॥
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दूषित भाव सुधार।
राणी सती सुविमल यश, बरणौं मति अनुसार॥
कामक्रोध मदलोभ में, भरम रह्यो संसार।
शरण गहि करूणामयी, सुख सम्पत्ति संचार॥
मैं गुरुओं के चरणों में प्रणाम कर और अपने मन से दूषित विचारों को निकाल कर, राणी सती की महिमा का अपनी बुद्धि के अनुसार वर्णन करता हूँ। इस संसार के प्राणी काम, क्रोध, अहंकार, लालसा इत्यादि से घिरे हुए हैं और जो कोई भी राणी सती की शरण में जाता है तो माता सती उसे सुख व संपत्ति प्रदान करती हैं।
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मानी।
नमो नमो संकटकूँ हरनी, मन वांछित पूरन सब करनी।
नमो नमो जय जय जगदम्बा, भक्तन काज न होय विलम्बा।
नमो नमो जय-जय जग तारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी।
सती जो कि भवानी माता का रूप हैं, उन्हें हमारा नमन है। इनकी प्रसिद्धि इस जगत में हर जगह फैली हुई है। वे हमारे संकटों को दूर कर देती हैं और उन्हें हमारा नमन है। वे हमारे मन की हरेक इच्छा को पूरा कर देती हैं। वे ही जगदंबा का रूप हैं और उनके इस रूप को हमारा नमन है। वे भक्तों के काम पूरे करने में किसी भी तरह की देरी नहीं करती हैं। वे ही इस जगत के प्राणियों का उद्धार करती हैं और अपने सेवकों के बिगड़े हुए काम सुधार देती हैं।
दिव्य रूप सिर चूँदर सोहे, जगमगात कुण्डल मन मोहे।
माँग सिन्दूर सुकाजन टीकी, गज मुक्ता नथ सुन्दर नीकी।
गल बैजन्ती माल बिराजे, सोलहुँ साज बदन पे साजे।
धन्य भाग्य गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को।
उन्होंने अपने सिर पर चुनरी ओढ़ी हुई है जिसमे उनका रूप दिव्य लग रहा है। उनके कानो में कुंडल जगमगाकर सभी का मन मोह रहे हैं। उन्होंने अपनी माँग में सिन्दूर का तिलक लगाया हुआ है और नाक में नथ पहनी हुई है। गले में बैजयन्ती के पुष्पों की माला है तो साथ ही सोलह श्रृंगार राणी सती ने किया हुआ है। गुरसामल जी के तो भाग खुल गए जो उनके घर में राणी सती का जन्म हुआ। राणी सती का जन्मस्थान डोकवा गाँव था।
तनधन दास पतिवर पाये, आनन्द मंगल होत सवाये।
जालीराम पुत्र वधू होके, वंश पवित्र किया कुल दोके।
पति देव रण माँय झुझारे, सती रूप हो शत्रु संहारे।
पति संग ले सद् गति पाई, सुर मन हर्ष सुमन बरसाई।
राणी सती का विवाह करने को पूरे धूमधाम से जालीराम अपने पुत्र को लेकर आये और बहुत ही आनंद के साथ उनके पुत्र टंडन के साथ राणी सती का विवाह संपन्न हुआ। राणी सती ने जालीराम की पुत्र वधु बनकर उनके वंश का मान बढ़ाने का कार्य किया। इसके पश्चात राणी सती के पति की युद्धभूमि में मृत्यु हो गयी तो उन्होंने अपने पति के हत्यारे को मारकर उसका प्रतिशोध लिया। फिर राणी सती अपने पति की चिता पर बैठकर सती हो गयी। यह दृश्य देखकर आकाश से देवताओं ने हर्षित होकर पुष्प वर्षा की।
धन्य धन्य उस राणी जी को, सुफल हुवा कर दरस सती का।
विक्रम तेरा सौ बावनकूँ, मंगसिर बदी नौमी मंगलकूँ।
नगर झुँझुनु प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता।
दूर देश के यात्री आवे, धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
वह राणी सती बहुत ही धन्य हैं जिन्होंने अपने पति का प्रतिशोध लिया और फिर सती हो गयी। इसके पश्चात माता सती झुंझुनू नगरी में प्रकट हुई और वहां उनके नाम का बहुत ही विशाल मंदिर बनवाया गया। इससे उनकी प्रसिद्धि बहुत दूर तक फैल गयी। उनके दर्शन करने तो दूर-दूर से भक्तगण आते हैं और उन्हें धूप, दीप व नैवेद्य चढ़ाते हैं।
उछाड़-उछाड़ते हैं आनन्द से, पूजा तन मन धन श्री फल से।
जात जडूला रात जगावे, बाँसल गोती सभी मनावे।
पूजन पाठ पठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चरते।
नाना भाँति-भाँति पकवाना, विप्रजनों को न्यूत जिमाना।
सभी भक्तगण आनंद से उछल-उछल कर पूरे तन, मन व धन के साथ राणी सती दादी की पूजा करते हैं। वे जडूला जाति व बंसल गोत्र में बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके भक्तगण पूरे विधि-विधान के साथ राणी सती दादी चालीसा का पाठ करते हैं और वेदों का अध्ययन करते हैं। राणी सती को भोग लगाने के लिए उनके भक्त कई तरह के पकवान बनाते हैं और पंडितों को जिमाते हैं।
श्रद्धा भक्ति सहित हरषाते, सेवक मन वाँछित फल पाते।
जय जय कार करे नर नारी, श्री राणी सती की बलिहारी।
द्वार कोट नित नौबत बाजे, होत श्रृंगार साज अति साजे।
रत्न सिंहासन झलके नीको, पल-पल छिन-छिन ध्यान सती को।
राणी सती के भक्त श्रद्धा भाव के साथ खुश दिखाई देते हैं और उनके मन की हरेक इच्छा भी पूरी हो जाती है। वे सभी राणी सती के नाम का जयकारा लगाते हैं। राणी सती के दरबार में तो ढोल-नगाड़े बजते हैं और उनका प्रतिदिन सुन्दर श्रृंगार किया जाता है। वे रत्नों से जड़ित सिंहासन पर विराजती हैं और हम सभी हर पल उनका ही ध्यान करते हैं।
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला।
भक्त सुजन की सकड़ भीड़ है, दर्शन के हित नहीं छीड़ है।
अटल भुवन में ज्योति तिहारी, तेज पुंज जग माँय उजियारी।
आदि शक्ति में मिली ज्योति है, देश देश में भव भौति है।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन राणी सती की नगरी में मेले का आयोजन किया जाता है। उस समय राणी सती दादी के दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। उनकी ज्योति अटल है जिससे संपूर्ण विश्व में प्रकाश हो रहा है। उनकी ज्योति माता आदि शक्ति में मिल गयी है और उसी से ही हर देश व भवन में प्रकाश व्याप्त है।
नाना विधि सो पूजा करते, निशदिन ध्यान तिहारा धरते।
कष्ट निवारिणी, दुःख नाशिनी, करूणामयी झुँझुनू वासिनी।
प्रथम सती नारायणी नामां, द्वादश और हुई इसि धामा।
तिहूँ लोक में कीर्ति छाई, श्री राणी सती की फिरी दुहाई।
हम कई तरह की विधियों से आपकी पूजा करते हैं और दिन-रात आपका ध्यान करते हैं। राणी सती कष्टों को दूर करने वाली, दुखों का नाश करने वाली, करुणा बरसाने वाली तथा झुंझुनू नगरी में वास करने वाली हैं। पहले उनका नाम नारायणी था लेकिन सती हो जाने के पश्चात उनका नाम राणी सती दादी पड़ गया। इस कृत्य के कारण तीनों लोकों में उनका यश फैल गया और सभी ने उनके नाम की दुहाई दी।
सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घण्टा ध्वनि टँकारे।
राग छत्तिसों बाजा बाजे, तेरहुँ मण्ड सुन्दर अति साजे।
त्राहि त्राहि मैं शरण आपकी, पूरो मन की आश दास की।
मुझको एक भरोसो तेरो, आन सुधारो कारज मेरो।
हम सभी सुबह-शाम आपके नाम की आरती करते हैं और ढोल-नगाड़े बजाते हैं। आपकी पूजा में तो छत्तीस तरह के बाजे बजते हैं और तेरह तरह के मण्डप सजते हैं। मैं त्राहिमाम करता हुआ आपकी शरण में आया हूँ। मुझे केवल आपका ही भरोसा है और अब आप मेरे बिगड़े हुए कामो को सुधार दीजिये।
पूजा जप तप नेम न जानूँ, निर्मल महिमा नित्य बखानूँ।
भक्तन की आपत्ति हर लेनी, पुत्र पौत्र वर सम्पत्ति देनी।
पढ़े यह चालीसा जो शतबारा, होय सिद्ध मन माँहि बिचारा।
गोपीराम (मैं) शरण ली थारी, क्षमा करो सब चूक हमारी।
मैं तो पूजा, जप, तपस्या इत्यादि कुछ नहीं जानता हूँ और निर्मल मन के साथ आपके नाम की महिमा गाता हूँ। आप अपने भक्तों की हर विपत्ति दूर कर देती हैं और उन्हें संतान, पौत्र, जीवनसाथी तथा संपत्ति देती हैं। जो कोई भी इस राणी सती दादी चालीसा को सौ बार पढ़ लेता है, उसके सभी काम सिद्ध हो जाते हैं। राणी सती चालीसा के लेखक श्री गोपीराम जी उनकी शरण में हैं और उनसे हुई किसी भी प्रकार की भूल के लिए राणी सती से क्षमा माँग रहे हैं।
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जग जीवन आधार।
बिगड़ी बात सुधारिये, सब अपराध बिसार॥
आप ही हमारे दुखों, पीड़ा, संकटों तथा कष्टों का हरण कर सकती हैं और आप ही हमारे जीवन का आधार हैं।अब आप हमारे अपराधों को क्षमा कर, हमारे सभी बिगड़े हुए काम, बातों तथा जीवन को सुधार दीजिये।
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