84 kos yatra

चौरासी (84) कोस यात्रा कथा

एक समय श्रीशंकर भगवान माता पार्वती के साथ कैलाश पर विराजमान थे | माता पार्वती भगवान शिव जी को बहुत देर से चिंतित देख कर शिव जी से पूछीं | भगवन मैं आपको बहुत देर से चिंतित देख रही हूँ | क्या में जान सकती हूँ कि आपकी चिंता का विषय क्या है | तब भगवान शिव जी माता पार्वती जी से बोले कि हे देवी, मेरी चिंता का विषय यह है कि सब लोग अपने – अपने गुरु बनाते हैं | पर आज तक हमने किसी को गुरु नहीं बनाया | क्यों कि कहा गया है कि जीवन में जब तक गुरु नहीं बनाया, तब तक का किया हुआ सभी पुन्य कार्यों का फल नहीं मिलता | हम रात दिन राम – राम जपते हैं पर उसका कोई फल हमें प्राप्त नहीं होता |इस लिये बिचार कर रहा हूँ | कि जगत में गुरु बनाये तो किसको |

इस पर माता पार्वती बोली कि आप जिनका रात दिन भजन करते हैं उन्ही को गुरु बना लीजिये | तब भगवान शिव जी बोले कि जिनका में भजन करता हूँ उनको तो पूरा संसार भजता है | इस लिये ये नहीं कुछ नया होना चाहिये | तब माता पार्वती जी भगवान शिव जी से बोलीं कि तब तो एक ही रास्ता है | क्यों ना भगवान विष्णु जी को श्री कृष्ण जी के नये रूप में और श्री लक्ष्मी जी को श्री राधा रानी जी के नये रूप में बना कर उनकी पूजा करके आप उन्हें गुरु बना लीजिये | भगवान शिव जी माता पार्वती जी की बात सुन कर प्रसन्न हो उठे | और बोले “हे देवी” तब तो मैं आज ही जा कर भगवान श्री विष्णु जी से अपना गुरु बनाने के लिए आग्रह करता हूँ | माता पार्वती बोली “हे नाथ” आपकी आज्ञा हो तो मैं भी आपके साथ श्रीविष्णु लोक चलना चाहती हूँ |

तब भगवान शिव और माता पार्वती श्रीविष्णु लोक के लिए प्रस्थान कर गये | श्रीविष्णु लोक पहुँच कर भगवान शिव जी और माता पार्वती जी भगवान श्रीविष्णु जी से बोले की ऐसे तो हम रात दिन आपका भजन करते ही हैं पर आज तक हमने किसी को गुरु नहीं बनाया इस लिए हमें हमारे भजन का फल नहीं मिलता, इस लिए हमने बिचार किया है की हम आपको ही गुरु बनाये | इस लिए आप और माता श्रीलक्ष्मी जी श्रीविरजा नदी के तट पर पधारें हम वहीँ आपको गुरु बनायेंगे |भगवान श्रीविष्णु जी और माता श्रीलक्ष्मी जी भगवान शिव जी का आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया | भगवान शिव और माता पार्वती जी वापस अपने स्थान कैलाश पर आ गये |

कुछ समय बाद भगवान शिव जी द्वारा दिये गये समय के अनुसार श्रीविष्णु जी और माता श्रीलक्ष्मी जी श्रीविरजा नदी के तट पर बताये गये जगह पर पहुँच गये |भगवान शिव जी और माता पार्वती जी ने भगवान श्रीविष्णु जी और माता श्रीलक्ष्मी जी का भव्य स्वागत किया | “स्वागत में भगवान शिव जी सभी लोकों से अलग श्रीविरजा नदी के तट पर एक नए लोक का निर्माण किया, जिसमें अनेकानेक गाये थीं सभी प्रकार के फलों के वृक्ष थे | मोर, तोता सभी पक्षी मोजूद थे | शीतल मन्द सुगन्ध हवायें चल रही थी | एक बहुत बड़ा सोने का रत्न जड़ित सिंहासन बना हुआ था” जिसका “श्रीगौलोक धाम” नाम दिया गया |

स्वागत के बाद भगवान शिव जी और माता पार्वती जी भगवान श्रीविष्णु जी और श्रीलक्ष्मी जी को पहले एक नया स्वरूप दिया | जिसमें श्रीविष्णु जी को श्रीकृष्ण जी के रूप में और श्रीलक्ष्मी जी को श्रीराधा जी के रूप में सजा कर उस सोने के सिंहासन पर बिठा कर विधि विधान से पूजन अर्चन करके फिर उनको अपना गुरु बनाया | और कहा कि महाराज ये लोक जिसका नाम “गौलोक धाम” है, ये आपकी विहार स्थली है | ये सारी गाय इस धाम में उपस्थित सभी वस्तु आपको समर्पित है | आप इसी रूप में ( श्रीराधा कृष्ण ) सदा यहाँ निवास करिये | और अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करिये | तदुपरान्त भगवान शिव जी और माता पार्वती अपने धाम कैलाश को वापस आ गये |

एक दिन श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी अपने धाम श्रीगौलोक में विहार कर रहे थे, दोनों विहार में इतने मद मस्त थे कि, तभी उसी समय श्रीराधा रानी जी के भाई वहाँ से गुजरे | श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी दोनों ही उनको नहीं देखे और ना ही उनके और ध्यान दिये | जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई को क्रोध आ गया कि, हम यहाँ से गुजर रहे हैं और ये लोग विहार में इतने मद मस्त हैं कि इनको हमारी ओर जरा भी ध्यान नहीं है | जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई ने श्रीराधा रानी जी को और श्रीकृष्ण जी को श्राप दे दिया कि आप लोग में जितना अधिक प्रेम है आप दोनों उतने ही दूर चले जाओगे | श्राप दे कर भाई तो चले गये |

तब श्रीकृष्ण जी श्रीराधा रानी जी से बोले कि आपके भाई द्वारा दिए गये श्राप के फल को भोगने के लिए तो मृत्युलोक में जाना पड़ेगा | क्यों कि यहाँ तो इस श्राप को भोगने का कोई साधन नहीं है | ये सुन कर श्रीराधा रानी जी रोने लगीं | और भगवान श्रीकृष्ण जी से बोलीं कि हम तो मृत्युलोक नहीं जायेंगे | क्यों कि वहाँ का लोक हमारे अनकूल नहीं है | वहाँ पाप अधिक है पुन्य कम है | तब भगवान श्रीकृष्ण जी बोले कि चाहे वहाँ जो भी हो, श्राप भोगने तो वहीँ जाना होगा | श्रीराधा रानी जी मृत्युलोक में आने के लिए किसी भी प्रकार से तैयार नहीं हो रहीं थीं, तब अन्त में श्रीकृष्ण जी बोले कि एक उपाय है | क्यों ना हम इस गौलोक धाम को ही वहाँ ले चलें | इस पर श्रीराधा रानी जी मृत्युलोक आने के लिए तैयार हो गयीं |

तब भगवान श्रीकृष्ण जी सर्व प्रथम श्रीयमुना जी को पृथ्वी ( धरती ) पर आने को कहा, फिर श्रीविरजा नदी का जल ( पानी ) श्रीयमुना जी में छोड़ा गया | इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी गौलोक धाम से ( 84 ) चौरासी अँगुल गौलोक धाम कि मिटटी पृथ्वी पर एक सीमित क्षेत्र चौरासी कोस में बर्षा की, 84 कोस बराबर 252 कि. मी.| श्रीविरजा नदी का जल और श्रीगौलोक धाम की मिटटी चौरासी कोस के क्षेत्र में एक साथ आने के कारण इस क्षेत्र का नाम ब्रज क्षेत्र पड़ा |

इस ब्रज क्षेत्र में 12 वन, 24 उपवन, 20 कुण्ड और नन्द गाँव, बरसाना, गोकुल, गोवर्धन, वृन्दावन, मथुरा, कोसी, राधा कुण्ड आदि क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं | ( चौरासी अँगुल इस लिए कि धर्म शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी पर हर मनुष्य का शरीर अपने हाथ कि अँगुली से चौरासी अँगुल का ही होता है | ) इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी गौलोक धाम के सभी पशु पक्षी इत्यादि को बोले कि आप श्रीराधा रानी जी कि सेवा में ब्रज में जाइये |

तब जा कर श्रीराधा रानी जी सर्व प्रथम ब्रज क्षेत्र के बरसाने में श्रीबृसभान जी के यहाँ प्रगट हुयीं | श्रीराधा रानी जी के ब्रज में आने के कई वर्ष बाद श्रीकृष्ण भगवान मथुरा में अपने मामा कंस के कारागृह में बन्द श्रीवासुदेव जी के यहाँ पधारे | और बाल्यकाल कि सभी लीला श्रीराधा रानी जी के साथ ब्रज में ही किया | इसके बाद श्रीकृष्ण जी तो ब्रज छोड़ कर चले गये, पर श्रीराधा रानी जी अपने भाई द्वारा दिए श्राप को ब्रज में ही बितायीं और बाद में अपने धाम गौलोक को चली गयी | बोलो जय श्री राधे |

श्री मद भागवत पुराण आदि में ऋषि – सन्तों का बर्णन है कि कलयुग में ब्रज चौरासी कोस कि परिक्रमा लगाने से चौरासी जन्म के पापों से सहज ही मुक्ति मिल जाती है |

मुक्ति कहे गोपाल से, मेरी मुक्ति बताओ |

ब्रज रज जब माथे चड़े, मुक्ति मुक्त हो जाय ||

ब्रज चौरासी कोस कि परिकम्मा जो देत|

तो लख चौरासी कोस के पाप हरि हर लेत ||

Pawan Sharma

Recent Posts

श्री गणेश अष्टोत्तर नामावली

यह लेख "श्री गणेश अष्टोत्तर नामावली" पर आधारित है, जो भगवान गणेश के 108 पवित्र…

2 months ago

10 आसान DIY इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाने के आइडिया

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)  का पर्व नजदीक आते ही लोग गणेश जी की प्रतिमाओं को…

2 months ago

हरतालिका तीज 2024: महत्व, व्रत विधि, कथा और पूजा समय

हरतालिका तीज हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाला पर्व है, जिसे मुख्यतः महिलाएं मनाती…

3 months ago

Gopal Sahastranaam Paath in Hindi |(श्री गोपाल सहस्रनाम)

गोपाल सहस्रनाम (Gopal Sahastranam) क्या हैं? देवी देवताओ के 1000 नामो को सहस्रनाम (Sahastranam) कहा…

3 months ago

Braj Chaurasi Kos Yatra

The Braj Chaurasi Kos Yatra takes believers on a holy trek across the Braj region…

3 months ago

सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड हिंदी अर्थ सहित | Full Sunderkand with hindi Meaning

सुंदरकांड, रामायण के पाँचवें कांड का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें भगवान हनुमान की वीरता,…

3 months ago