॥ दोहा ॥
चित्त में बसो चिंतपूर्णी, छिन्नमस्तिका मात।
सात बहनों में लाड़ली, हो जग में विख्यात॥
माईदास पर की कृपा, रूप दिखाया श्याम।
सबकी हो वरदायनी, शक्ति तुम्हें प्रणाम॥
॥ चौपाई ॥
छिन्नमस्तिका मात भवानी, कलिकाल में शुभ कल्याणी।
सती आपको अंश दियो है, चिंतपूर्णी नाम कियो है।
चरणों की लीला है न्यारी, जिनको पूजे हर नर-नारी।
देवी-देवता हैं नत मस्तक, चैन ना पाए भजे ना जब तक।
शांत रूप सदा मुस्काता, जिसे देखकर आनंद आता।
एक ओर कालेश्वर साजे, दूजी ओर शिवबाडी विराजे।
तीसरी ओर नारायण देव, चौथी ओर मचकुंद महादेव।
लक्ष्मी नारायण संग विराजे, दस अवतार उन्हीं में साजे।
तीनों द्वार भवन के अंदर, बैठे ब्रह्मा विष्णु और शिवशंकर।
काली लक्ष्मी सरस्वती माँ, सत रज तम से व्याप्त हुई माँ।
हनुमान योद्धा बलकारी, मार रहे भैरव किलकारी।
चौंसठ योगिनी मंगल गावें, मृदंग छैने महंत बजावें।
भवन के नीचे बावड़ी सुंदर, जिसमें जल बहता है झरझर।
संत आरती करें तुम्हारी, तुमने सदा पूजत हैं नर-नारी।
पास है जिसके बाग निराला, जहां है पुष्पों की वनमाला।
कंठ आपके माला विराजे, सुहा-सुहा चोला अंग साजे।
सिंह यहां संध्या को आता, शुभ चरणों में शीश नवाता।
निकट आपके जो भी आवे, पिंडी रूप दर्शन पावे।
रणजीत सिंह महाराज बनाया, तुम्हें स्वर्ण का छत्र चढ़ाया।
भाव तुम्हीं से भक्ति पाया, पटियाला मंदिर बनवाया।
माईदास पर कृपा करके, आई भरवई पास विचर के।
अठूर क्षेत्र मुगलों ने घेरा, पिता माईदास ने टेरा।
अम्ब क्षेत्र के पास में आए, तीन पुत्र कृपा से पाये।
वंश माई ने फिर पुजवाया, माईदास को भक्त बनाया।
सौ घर उसके हैं अपनाए, सेवा में जो तुमरी आए।
चार आरती हैं मंगलमय, प्रातः मध्य संध्या रातम्य।
पान ध्वजा नारियल लाऊं, हलवे चने का भोग लगाऊं।
असौज चैत्र में मेला लगता, अष्टमी सावन में भी भरता।
छत्र व चुन्नी शीश चढ़ाऊं, माला लेकर तुमको ध्याऊं।
मुझको मात विपद ने घेरा, मोहमाया ने डाला फेरा।
ज्वालामुखी से तेज हो पातीं, नगरकोट से भी बल पातीं।
नयना देवी तुम्हें देखकर, मुस्काती हैं प्रेम में भरकर।
अभिलाषा माँ पूरण कर दो, हे चिंतपूर्णी झोली भर दो।
ममता वाली पलक दिखा दो, काम क्रोध मद लोभ हटा दो।
सुख दुःख तो जीवन में आते, तेरी दया से दुख मिट जाते।
तुमको कहते चिंता हरणी, भयनाशक तुम हो भयहरणी।
हर बाधा को आप ही टालो, इस बालक को गले लगा लो।
तुम्हरा आशीर्वाद मिले जब, सुख की कलियां आप खिले सब।
कहां तक दुर्गे महिमा गाऊं, द्वार खड़ा ही विनय सुनाऊं।
चिंतपूर्णी मां मुझे अपनाओ, भव से नैया पार लगाओ।
॥ दोहा ॥
चरण आपके छू रहा हूं, चिंतपूर्णी मात।
चरणामृत दे दीजिए, हो जग में विख्यात॥
॥ Doha ॥
Chitt mein baso Chintpurni, Chhinnamastika Maat।
Saat bahnon mein laadli, ho jag mein vikhyaat॥
Maidass par ki kripa, roop dikhaya Shyam।
Sabki ho Vardayani, Shakti tumhein pranam॥
॥ Chaupai ॥
Chhinnamastika Maat Bhavani, kalikal mein shubh kalyani।
Sati aapko ansh diyo hai, Chintpurni naam kiyo hai।
Charanon ki leela hai nyaari, jinhe pooje har nar-naari।
Devi-devta hain nat mastak, chain na paaye bhaje na jab tak।
Shaant roop sada muskaata, jise dekhkar aanand aata।
Ek or Kaleshwar saaje, dooji or Shivbadi viraaje।
Tisri or Narayan Dev, chauthi or Machkund Mahadev।
Lakshmi Narayan sang viraaje, das avataar unhi mein saaje।
Teenon dwaar bhavan ke andar, baithe Brahma Vishnu aur Shivshankar।
Kaali Lakshmi Saraswati Maa, sat raj tam se vyapt hui Maa।
Hanuman yoddha balkari, maar rahe Bhairav kilkaari।
Chaunsath Yogini mangal gaave, mridang chaine mahant bajaave।
Bhavan ke neeche baawadi sundar, jisme jal bahta hai jharjhar।
Sant aarti karen tumhaari, tumhe sada poojat hain nar-naari।
Paas hai jiske baag niraala, jahaan hai pushpon ki vanmaala।
Kanth aapke maala viraaje, suha-suha chola ang saaje।
Singh yahaan sandhya ko aata, shubh charanon mein sheesh navaata।
Nikat aapke jo bhi aave, pindi roop darshan paave।
Ranjit Singh Maharaj banaya, tumhein swarn ka chhatra chadhaaya।
Bhaav tumhi se bhakti paaya, Patiala mandir banwaaya।
Maidass par kripa karke, aayi Bharvai paas vichar ke।
Athoor kshetra Mughlo ne ghera, pita Maidass ne tera।
Amb kshetra ke paas mein aaye, teen putr kripa se paaye।
Vans Maai ne fir pujwaaya, Maidass ko bhakt banaya।
Sau ghar uske hain apnaaye, seva mein jo tumri aaye।
Chaar aarti hain mangalmay, praat: madhya sandhya raatmy।
Paan dhwaja nariyal laun, halwe chane ka bhog lagaaun।
Asauj Chaitr mein mela lagta, Ashtami Sawan mein bhi bharta।
Chhatra v chunni sheesh chadhaun, maala lekar tumko dhyaun।
Mujhko Maat vipad ne ghera, mohamaya ne daala fera।
Jwalamukhi se tej ho paatin, Nagarkot se bhi bal paatin।
Naina Devi tumhein dekhkar, muskaati hain prem mein bharkar।
Abhilasha Maa poorn kar do, he Chintpurni jholi bhar do।
Mamta waali palak dikha do, kaam krodh mad lobh hata do।
Sukh dukh to jeevan mein aate, teri daya se dukh mit jaate।
Tumko kehte Chinta Harni, bhaynashak tum ho bhayharni।
Har baadha ko aap hi taalo, is baalak ko gale laga lo।
Tumhara aashirvaad mile jab, sukh ki kaliyan aap khile sab।
Kahaan tak Durge mahima gaaun, dwaar khada hi vinay sunaun।
Chintpurni Maa mujhe apnaao, bhav se naiya paar lagao।
॥ Doha ॥
Charan aapke chhoo raha hoon, Chintpurni Maat।
Charanamrit de deejiye, ho jag mein vikhyaat॥
॥ दोहा ॥
चित्त में बसो चिंतपूर्णी, छिन्नमस्तिका मात।
सात बहनों में लाड़ली, हो जग में विख्यात॥
माईदास पर की कृपा, रूप दिखाया श्याम।
सबकी हो वरदायनी, शक्ति तुम्हें प्रणाम॥
हे चिंतपूर्णी माता! हे छिन्नमस्तिका माता! आप मेरे मन में वास करो। आप अपनी सात बहनों में सबसे ज्यादा लाड़ली हो और आपकी प्रसिद्धि इस जगत में हर जगह फैली हुई है। आपने अपना श्याम रूप दिखाकर हम सभी पर कृपा की है। आप हम सभी को वरदान देती हो और आपके इस शक्ति रूप को मेरा प्रणाम है।
॥ चौपाई ॥
छिन्नमस्तिका मात भवानी, कलिकाल में शुभ कल्याणी।
सती आपको अंश दियो है, चिंतपूर्णी नाम कियो है।
चरणों की लीला है न्यारी, जिनको पूजे हर नर-नारी।
देवी-देवता हैं नत मस्तक, चैन ना पाए भजे ना जब तक।
हे छिन्नमस्तिका माता!! आप ही माँ भवानी का रूप हो जो इस कलियुग में शुभ फल देने वाली हो। माता सती के कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है और आपका नाम चिंतपूर्णी पड़ा है। माता सती के चरण यहीं पड़े थे और उनकी महिमा सबसे न्यारी है जिनकी पूजा हर कोई करता है। आपके चरणों के सामने तो सभी देवी-देवता अपना शीश झुकाते हैं और आपका भजन किये बिना उन्हें शांति नहीं मिलती है।
शांत रूप सदा मुस्काता, जिसे देखकर आनंद आता।
एक ओर कालेश्वर साजे, दूजी ओर शिवबाडी विराजे।
तीसरी ओर नारायण देव, चौथी ओर मचकुंद महादेव।
लक्ष्मी नारायण संग विराजे, दस अवतार उन्हीं में साजे।
आपका शांत रूप हमेशा मुस्कुराता रहता है जिसे देखकर हमें आनंद की अनुभूति होती है। आपके एक ओर कालेश्वर भगवान तो दूसरी ओर, शिवबाड़ी विराजमान हैं। तीसरी ओर, साक्षात नारायण देवता और चौथी ओर मचकुंद महादेव विराजित हैं। आपके साथ में लक्ष्मी नारायण विराजित हैं और दसों अवतार उसी में ही बसते हैं।
तीनों द्वार भवन के अंदर, बैठे ब्रह्मा विष्णु और शिवशंकर।
काली लक्ष्मी सरस्वती माँ, सत रज तम से व्याप्त हुई माँ।
हनुमान योद्धा बलकारी, मार रहे भैरव किलकारी।
चौंसठ योगिनी मंगल गावें, मृदंग छैने महंत बजावें।
आपके भवन के तीनों द्वारों में ब्रह्मा, विष्णु व शिव शंकर बैठे हुए हैं। माँ काली, लक्ष्मी व सरस्वती तीनो गुणों का प्रतिनिधित्व करते हुए आपके अंदर बसी हुई है। आपके मंदिर में वीर हनुमान भी रक्षक रूप में विराजित हैं तो वहीं भैरव बाबा किलकारी मार रहे हैं। चौसंठ योगिनियाँ मंगलगान कर रही हैं और महंत मृदंग बजा रहे हैं।
भवन के नीचे बावड़ी सुंदर, जिसमें जल बहता है झरझर।
संत आरती करें तुम्हारी, तुमने सदा पूजत हैं नर-नारी।
पास है जिसके बाग निराला, जहां है पुष्पों की वनमाला।
कंठ आपके माला विराजे, सुहा-सुहा चोला अंग साजे।
आपके मंदिर के नीचे बहुत ही सुन्दर बावड़ी बनी हुई है जिसमें से जल बह रहा है। संत लोग हमेशा ही आपकी आरती करते हैं और हम सभी आपकी पूजा करते हैं। आपके मंदिर के पास ही एक बहुत सुन्दर बगीचा है जहाँ तरह-तरह के पुष्प खिले हुए हैं। आपके गले में माला है और आपने चोला पहन रखा है।
सिंह यहां संध्या को आता, शुभ चरणों में शीश नवाता।
निकट आपके जो भी आवे, पिंडी रूप दर्शन पावे।
रणजीत सिंह महाराज बनाया, तुम्हें स्वर्ण का छत्र चढ़ाया।
भाव तुम्हीं से भक्ति पाया, पटियाला मंदिर बनवाया।
शाम के समय में आपके मंदिर में सिंह भी आपकी पूजा करने को आता है। आपके दर्शन को जो भी आता है वह पिण्डी रूप में आपको देखता है। महाराज रणजीत सिंह ने आपके मंदिर पर सोने का छत्र चढ़ाया था। आपकी भक्ति में डूब कर ही उन्होंने पटियाला में आपके नाम का मंदिर बनवाया था।
माईदास पर कृपा करके, आई भरवई पास विचर के।
अठूर क्षेत्र मुगलों ने घेरा, पिता माईदास ने टेरा।
अम्ब क्षेत्र के पास में आए, तीन पुत्र कृपा से पाये।
वंश माई ने फिर पुजवाया, माईदास को भक्त बनाया।
आपने ही अपने भक्त माईदास पर कृपा की और वह ढूंढते-ढूंढते आपके मंदिर के पास पहुँच गया। उस समय संपूर्ण क्षेत्र पर दुष्ट आक्रांताओं मुगलों का शासन था लेकिन माईदास आपके मंदिर के पास आकर रुक गया। आपके सानिध्य में आकर माईदास को तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई। आपने ही माईदास के वंश को आगे बढ़ाया और उसे अपना भक्त बना लिया।
सौ घर उसके हैं अपनाए, सेवा में जो तुमरी आए।
चार आरती हैं मंगलमय, प्रातः मध्य संध्या रातम्य।
पान ध्वजा नारियल लाऊं, हलवे चने का भोग लगाऊं।
असौज चैत्र में मेला लगता, अष्टमी सावन में भी भरता।
जो भी माँ चिंतपूर्णी की सेवा करता है, आप उसके घर में वास करती हैं। आपकी दिन के चारों समय आरती की जा सकती है जो सुबह, दोपहर, शाम व रात है। मैं आपके मंदिर में पान, ध्वजा व नारियल चढ़ाता हूँ और हलवे व चने का भोग लगाता हूँ। चैत्र नवरात्र तथा सावन की अष्टमी में आपके यहाँ मेला लगता है।
छत्र व चुन्नी शीश चढ़ाऊं, माला लेकर तुमको ध्याऊं।
मुझको मात विपद ने घेरा, मोहमाया ने डाला फेरा।
ज्वालामुखी से तेज हो पातीं, नगरकोट से भी बल पातीं।
नयना देवी तुम्हें देखकर, मुस्काती हैं प्रेम में भरकर।
मैं आपके यहाँ छत्र व चुन्नी चढ़ाता हूँ और जपमाला लेकर आपका ध्यान करता हूँ। मुझे चारों ओर से संकटों ने घेरा हुआ है और मैं मोहमाया में फंसा हुआ हूँ। आपका तेज तो ज्वालामुखी से भी अधिक है और पूरे नगर से सबसे शक्तिशाली आप ही हैं। नयना देवी भी आपको देखकर प्रेम सहित मुस्कुराती हैं।
अभिलाषा माँ पूरण कर दो, हे चिंतपूर्णी झोली भर दो।
ममता वाली पलक दिखा दो, काम क्रोध मद लोभ हटा दो।
सुख दुःख तो जीवन में आते, तेरी दया से दुख मिट जाते।
तुमको कहते चिंता हरणी, भयनाशक तुम हो भयहरणी।
हे माँ चिंतपूर्णी!! अब आप मेरी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दो और मेरे जीवन को खुशियों से भर दो। आप मुझ पर माँ की भांति कृपा कर मुझ पर से काम, क्रोध, मोह, लोभ इत्यादि का साया दूर कर दो। इस जीवन में सुख-दुःख तो आते ही रहते हैं लेकिन आपकी कृपा से दुःख समाप्त हो जाते हैं। आपको तो चिंता को दूर करने वाली कहा जाता है और अब आप मेरे भय का नाश कर मुझे चिंतामुक्त कर दो।
हर बाधा को आप ही टालो, इस बालक को गले लगा लो।
तुम्हरा आशीर्वाद मिले जब, सुख की कलियां आप खिले सब।
कहां तक दुर्गे महिमा गाऊं, द्वार खड़ा ही विनय सुनाऊं।
चिंतपूर्णी मां मुझे अपनाओ, भव से नैया पार लगाओ।
आप अपनी इस संतान की सभी बाधाओं को समाप्त कर गले से लगा लो। जिस किसी को भी आपका आशीर्वाद मिल जाता है, उसका जीवन सुखमय हो जाता है। अब मैं आपकी महिमा का क्या ही बखान करूँ, मैं तो आपके द्वार पर खड़ा होकर आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ। अब आप अपने इस भक्त को अपना लीजिये और भवसागर से पार लगवा दीजिये।
॥ दोहा ॥
चरण आपके छू रहा हूं, चिंतपूर्णी मात।
चरणामृत दे दीजिए, हो जग में विख्यात॥
हे माँ चिंतपूर्णी!! मैं आपके चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ और अब आप मुझ पर अपनी कृपा कीजिये। आप मेरे जीवन को खुशियों से भर दीजिये और मेरे यश को इस विश्व में फैला दीजिये।
यह लेख "श्री गणेश अष्टोत्तर नामावली" पर आधारित है, जो भगवान गणेश के 108 पवित्र…
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का पर्व नजदीक आते ही लोग गणेश जी की प्रतिमाओं को…
हरतालिका तीज हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाला पर्व है, जिसे मुख्यतः महिलाएं मनाती…
गोपाल सहस्रनाम (Gopal Sahastranam) क्या हैं? देवी देवताओ के 1000 नामो को सहस्रनाम (Sahastranam) कहा…
The Braj Chaurasi Kos Yatra takes believers on a holy trek across the Braj region…
सुंदरकांड, रामायण के पाँचवें कांड का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें भगवान हनुमान की वीरता,…